इक पल लगता है जिंदगी मिटाने में
इक पल लगता है किसी को अपना बनाने में
था किसी का नजरों से नजरें मिलाने का अंदाज ऐसा
कि बरसों लग गए उस एक पल को भूलाने में...
ना सुनाएं हमे दास्तां परवाने के जलने की
हम ने छोड दी है राह फिसलने की
इस दिल ने खाए हैं दाग़-ए-हिजर् बहुत
इसलिए आदत है जरा संभल कर चलने की ।
पल पल लम्हा लम्हा तेरी यादों में गुमसुम रहता है दिल
ये नज़ाकत है तेरे हुस्न की या मोहब्बत में ऐसे ही फ़ना होता है दिल ।
उसकी यादों ने दिल पे दस्तक दी तो जिंदगी से फिर मोहब्बत सी हो गई
मुद्दत बाद फिर इस तन्हा दिल में चिरागों की रोशनी सी हो गई ।
एक शब्द-
जो किसी के वजूद का हिस्सा होता है
किसी की जिंदगी का वो किस्सा होता है
जिसके आचँल में सिमटा होता है सारा जहान
वो एक शब्द होता है- माँ ।
कैसे बरदास्त करूं मैं ग़म तेरे जाने का
तेरी यादें पूछ लेती हैं राह म़यखाने का
गुजरते वक्त के कदमों की आहट नहीं होती
कब़ऱो में कभी जिंदगियां आबाद नहीं होती
मत कर गुम़ान तूँ इस कद्र बन्दे
क्योंकि ख़ुदा की लाठी में आवाज़ नहीं होती ।
शब-ए-फुरकत में कहां तक रोयें हम
कुछ ग़म तो उनकी बे़वफाई के हैं कुछ ग़म उनकी जुदाई के हैं ।
दीदार-ए-यार का था उनके रूख़सार पे ऐसा असर
जैसे लिख दी हो गज़ल किसी ने चॅाद पर……
कर के सितम हजारों हमारे दिल पे, वो यूं चल दिए
जैसे महफिल में टूटा हो पैमाना, किसी बेवफा के आने पर …..
सब कुछ लुटा के मोहब्बत में, सोया हूँ कफन में बडे चैन से यारो
मत रोने देना मरीयत पे मेरी उनको, दाग ना लगे मेरी वफा को यारो …..
हमने अपने अरमानों की चिता में जला दिया अफसाना दर्द-ए-मोहब्बत का
कोई हमारी निगाहों में पढ ले अंजाम नाकाम-ए-मोहब्बत का…….
नजरों के खंजर से कर गए दिल को जख्मी वो
बडे बेदरदी हैं, कहते हैं हमारी अदा थी वो…….
नहीं मालूम हसरत है या तूं मेरी मोहब्बत है
बस इतना जानता हूं कि मुझको तेरी जरूरत है…..
बेवफा हो गए वो ग़म-ए-जिंदगी से हार के
हम ने तो पलकों से चुने थे ख़ार उनकी राह के
हर पल तेरा प्यार तेरा दीदार जरुरत है मेरी
तेरी बाँहों मे निकले दम ये हसरत है मेरी
तेरी दिलफ़रेब अदाओं से कत्ल हुऐ जो दीवाने
तेरे इशक में जलने को तैयार बैठे हैं वो परवाने
शब़ोरोज़ तडपा है दिल और खाए जि़गर ने भी दाग़े हिज़र
कैसे बताएं तेरे जाने के बाद वक्त कैसा गुजरा है दीवाने पर ।
बेइन्ताह ज़जबातों का सिलसिला है इशक
समझो तो जन्नत है
ना समझो तो हवा का एक झोंका है इशक ।
सारे जमाने का दरद समेट कर जब खुदा से कुछ ना बन सका
तो उसने इशक बना दिया....
रशक होने लगा जब उसे दीवानो की दीवानगी से
तो उसने ज़माने को मोहब्बत का दुशमन बना दिया.....
ग़मोँ की आहट से अब दिल नहीं डरता
ज़खमों को दरद की आदत सी हो गई है
हवा का एक झोंका ऐसी हिमाकत कर गया
छू कर हमारे महबूब को वो सामने से गुज़र गया ।
गुजरते वक्त के कदमों की आहट नहीं होती
कब़ऱो में कभी जिंदगियां आबाद नहीं होती
मत कर गुम़ान तूँ इस कद्र बन्दे
क्योंकि ख़ुदा की लाठी में आवाज़ नहीं होती ।
सूखे पत्ते से सपने
ईधर ऊधर बिखर गए
आवाज भी ना टूटने की
और ज़ख्म गहरे कर गए ।
जल कर राख़ हुई बेवज़ह सी चाहत हमारी
कहाँ चली गई खुशी उलझ गई जिन्दगी सारी ।
उनकी एक झलक पाने को कतरा कतरा जिए हम
बेसबब ही एक गुमनाम आशिक बन फना हुए हम
यादों की गली से जब भी हम गुजरे
सिर्फ ग़मों से मुलाकात हुई
तन्हा तन्हा जिंदगी में
लम्हा लम्हा आंसूओं की बरसात हुई
जब से यार का इज़हार-ए-मोहब्बत हमारा नसीब हो गया
तब से शहर का हर शख्स हमारा रकीब हो गया
यादों के काफिले थे आंसूओं के सैलाब थे
खून-ए-जिगर में भीगे कुछ ख्याल थे
मोहब्बत की राह में कांटें बेहिसाब थे
ये हमारी जि्दगी के कुछ लम्हे बेमिसाल थे
जिंदगी गुजर जाती है
वक्त के साथ कुछ यादें मिट जाती हैं
कुछ यादें-
दिल के किसी कोने में पडी
बार बार दिल का दरवाजा खटखटाती हैं
ऐसी कुछ यादें तडपाती हैं...
कुछ यादें गुदगुदाती हैं....
कुछ यादें रूलाती हैं...
दिल की दुनिया में रब्बा ये कैसा कर्म है
चाहत के बदले मिलते यहाँ ग़म हैं ।
तलाश है एक शुकून भरे लम्हे की
ढूँढ रहाँ हूँ अनजान राहों में
मिल जाए कतरा-ए-खुशी गर कहीं
'जी' भर लूँ उसे मैं अपनी बाँहों मैं ।
या खुदा मेरी तकदीर की तूँ मुरम्मत कर दे
मेरे यार को मेरा मुक्कदर कर दे
आ जाए वो मेरी साँसों की पनाह में
बस मौला मेरे तूँ इतना रहम कर दे ।
सांसों में रवानी सी लगती है ये शाम भी सुहानी सी लगती है
आज रात चांद से पूछेंगें हम क्या वो भी दिवानी सी लगती है
दिल की जमीन पे मोहब्बत का मकां बनाने की ख्वाहिश है
मुदद्त से इस फरेबी दुनिया में वफ़ा की बस्ती ढूंढ रहा हूं ।
दोनो जहाँ तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है देखो तेरी मोहब्बत में हार के
जिंदगी का क्या भरोसा
किस पल सांसों की डोर टूट जाए
क्यों दूर रह कर हम एक पल भी गंवाऐ
आ जी लें हर पल को हम जी भर कर
ना जाने कौन सा पल
जिंदगी का आखरी पल बन जाए...
हमारी क़ब्र पर आकर
दो फूल उन्होने जो चढा दिए
आसूँ के दो कतरे बहा दिए
वो समझ बैठे कि फ़र्ज अपने निभा दिए ।
सोया था बडे चैन से क़ब्र में
अपने सब दर्दों को समेट कर
मगर उनकी ख़म्ब़कत एक आहट ने
सब दर्द एक एक कर पिंघला दिए ।
हम भी कितने नादान थे ताउम्र ये क्या करते रहे
रोग था इश्क का ओर दवा दिल की करते रहे ।
बस एक खता ग़ालिब उम्रभर करता रहा
गरद थी चेहरे पर आइना साफ करता रहा ।
जाती हुई हवाँएं ये कैसा गुनाह कर गई
आँचल उडाकर सनम को परेशाँ कर गई
थीं जो घटाएँ हया की उनके चेहरे पर
तोबा उनकी वो अदा हमें फ़ना कर गई ।
उसकी यादों ने दिल पे दस्तक दी तो जिंदगी से फिर मोहब्बत सी हो गई
मुद्दत बाद फिर इस तन्हा दिल में चिरागों की रोशनी सी हो गई ।
फिज़ाओं की महक तेरे हुस्न की पैदाइश है
कर लूं मोहब्बत तुम से ये दिल की ख्वाहिश है
खो कर गुलों की आगोश में कहा भँवरों ने
उडा रही है जो होश ये किसके साँसों की गरमाईश है ।
ये तो कज़ा में होता है किसी का मिलना फिर जुदा होना
मगर मजरूह दिल को मंजूर नहीं होता दिलबर का बेवफ़ा होना
चांद मेरी बेबसी पर तमाम रात यूं मुस्कराता रहा
जैसे छिन कर किसी का प्यार कोई इतराता रहा
खाई तूने जो कसमें किए तूने जो वायदे
चांद गवाह है तारों नें भी सुनी वो सब बातें
कैसे कह दूं कि तुम बेवफा नहीं
आँसूओं में भीगी हैं मेरी कितनी चांदनी रातें
पिंघल चुका हूँ तमाजत में आफताफ़ की मैं
मेरा वजूद भी अब मेरे आसपास नहीं
चेहरें हैं कि मरमर से तराशी हुई लोहें
बाजार में या शहरें-खामोशां में खडा हूँ मैं
[लोहें-पथ्तर के टुकडे जिन पर लिखकर कब्र पर लगाते हैं
शहरें-खामोशां-कब्रीस्तान]
पत्तों पर पडी बारिश की बूँदें कहतीं हैं
हमारे प्यार की उम्र इतनी कम क्यों होती हैं
पडी रहना चाहती हैं हम अपनी मोहब्बत की आगोश में
मगर यें खम्बखत हवाएँ हमसे खफा क्यों होती हैं।
अभी इस तरफ ना निगाह कर
मैं गज़ल की पलकें सँवार लूं
मेरा लफ़ज लफ़ज हो आईना
तूझे आईने में उतार लूं
इन बहते हुए आंसूओ से अकीदत है मुझे भी
उनकी तरह ही खुद से शिकायत है मुझे भी
वो अगर नाजुक हैं तो मैं भी पत्थर नहीं
तन्हाई में रोने की आदत है मुझे भी
ये किसकी यादें है ये किसका तराना है
जो अशक हैं आँखों मै दर्द का वो फसाना है
आँखों में नमी लिए चुप वो बैठे हैं
जाने कौन सा जख्म है दिल जिसका ठिकाना है ।
ओर कितनी करूँ मैं तुझ से ईल्तजा
तेरी बेरूखी से हूँ मैं परेशाँ
मोहब्बत खेल है फरेब का
ये समझे ना दिल-ए-नादान
ग़जल...
तेरे शहर में घूमता हूँ अजनबी की तरह
दिल में मोहब्बत का ज़ज्बा है परवाने की तरह ।
इस शहर के हर ज़र्रे मं तस्वीर तेरी देखता हूँ
तूँ सलामत है इस दिल में धडकन की तरह ।
माना अजनबी हूँ मगर दोस्ती है इन फ़िजाओं से
तेरे शहर के हर गुल को चूमता हूँ भँवरे की तरह ।
ग़र मिल जाए तूँ कहीं एक रोज किसी राह में
ख़ुदा समझ सजदा करूँगा तूझे मैं दीवाने की तरह ।
कम्बख्त चांद हर रोज मेरी तुरबत पे आ कर मुस्कराता है
उसकी चांदनी में मुझे प्यार का वो मंजर नजर आता है
हम भी कभी खोये थे उसकी काली जुल्फें घनेरो में
वक्त की बात है आज सोये हैं ताबूत के इन अन्धेरों में ।
बस एक खता ग़ालिब उम्रभर करता रहा
गरद थी चेहरे पर आइना साफ करता रहा ।
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