रहता हूँ किराये की काया में...
रोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाता हूँ....
मेरी औकात है बस मिट्टी,
जितनी..
बात मैं महल मिनारों की कर जाता हूँ...
जल जायेगी ये मेरी काया एक दिन...
फिर भी इसकी खूबसूरती
पर इतराता हूँ...
मुझे पता है मैं खुद के सहारे श्मशान तक भी ना जा सकूँगा....
इसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ ..
रोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाता हूँ....
मेरी औकात है बस मिट्टी,
जितनी..
बात मैं महल मिनारों की कर जाता हूँ...
जल जायेगी ये मेरी काया एक दिन...
फिर भी इसकी खूबसूरती
पर इतराता हूँ...
मुझे पता है मैं खुद के सहारे श्मशान तक भी ना जा सकूँगा....
इसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ ..
���� जय श्री राम ����
#Amit Rajput Uplanya
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