Meri Mot Par Tu Yakin Kar Le - Dard Poetry



मिली जो नसीब में है दूरियाँ 
अब उन्हें तू भी मंज़ूर कर ले 
मैं जी रही हूँ मर कर के 
अब तो मेरी मौत पर यकीन कर ले 

किसी के नसीब में जिस्म होता है 
किसी को बस साया ही नसीब होता है 
मैं बस और बस तेरी यादों में हूँ 
अब तो मेरी रुह को रुख़सत कर दे

बनी रहे मुस्कान तेरे लबों पर 
अब तो बस यही नग़मा है पढ़ना 
है ये कुर्बत या ईबादत ना जान सकी मैं 
इस क़शमक़श से अब तो मुझे रिहा कर दे
ना रुसवाईयों से दामन भरना 
ना शिकायतों को दिल में रखना 
मुस्कुराती रहे दुनिया यूँ ही तेरी 
अब तो बस यही मुझे दुआ है करना
  
मिली जो नसीब में है दूरियाँ
अब उन्हें तू भी मंज़ूर कर ले
मैं जी रही हूँ मर कर के 
अब तो मेरी मौत पर तू यकीन कर ले...

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