मिली जो नसीब में है दूरियाँ
अब उन्हें तू भी मंज़ूर कर ले
मैं जी रही हूँ मर कर के
अब तो मेरी मौत पर यकीन कर ले
किसी के नसीब में जिस्म होता है
किसी को बस साया ही नसीब होता है
मैं बस और बस तेरी यादों में हूँ
अब तो मेरी रुह को रुख़सत कर दे
बनी रहे मुस्कान तेरे लबों पर
अब तो बस यही नग़मा है पढ़ना
है ये कुर्बत या ईबादत ना जान सकी मैं
इस क़शमक़श से अब तो मुझे रिहा कर दे
ना रुसवाईयों से दामन भरना
ना शिकायतों को दिल में रखना
मुस्कुराती रहे दुनिया यूँ ही तेरी
अब तो बस यही मुझे दुआ है करना
मिली जो नसीब में है दूरियाँ
अब उन्हें तू भी मंज़ूर कर ले
मैं जी रही हूँ मर कर के
अब तो मेरी मौत पर तू यकीन कर ले...
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